Friday, July 10, 2020

वर्तमान समय केवल दुःखदायी नहीं ! --दर्शन 'रत्न' रावण 

"दुःख और सुःख मात्र हमारी सोच {इच्छा}  निर्भर है।" यह केवल विचार नहीं, यह शाश्वत सत्य है जिससे हमें रुह-ब-रुह करवाया सृजक वाल्मीकि त्रिकाल ने। सृष्टिकर्ता वाल्मीकि दयावान अपनी रचना  योगविशिष्ठ में हमें यह उत्तम ज्ञान प्रदान करते हैं। 

परमेश्वर वाल्मीकि करुणासागर पावन योगविशिष्ठ में कहते हैं, "सुःख और दुःख न देह को होते हैं, न आत्मा को। अज्ञान से ही इसका अनुभव होता है।" आगे मार्ग भी बताते हुए फरमाते हैं, "सब दुखों का क्षय {नाश} करने के लिए पुरुषार्थ के अतिरिक्त दूसरा कोई मार्ग नहीं। 

अब इन ज्ञानवर्धक बातों को हम थोड़ा आसान करके और आज की कोरोना वायरस से उत्त्पन हालातों से जोड़ कर समझने की कोशिश करते हैं। हालाँकि स्थितियें सब की अपनी-अपनी हैं। तो सुःख और  अनुभव भी अपना-अपना ही होगा। समय मुश्किल है  शक नहीं।    

थोड़ा-सा अपना ध्यान कोरोना, बीमारी और मृत्यु से कर सोचिए ! क्या इतना समय जीवन में कभी मिल सकता था परिवारों के साथ। युगों से ऐसा शायद कभी हुआ हो। सारा कारोबार, मिल-इंडस्ट्री, सड़कें और रेल पटरी इतनी शांत हो जाएँगी कभी कल्पना की थी ? इसके केवल दुष्प्रभाव ही नहीं हैं।  

अगर भारत की बात करूँ, भारत में कई दशकों से सरकारें नदियों की सफाई का बजट करोड़ों-अरबों रुपयों में रखती रही। मगर परिणाम नदी तो साफ़ नहीं हुई खज़ाना साफ हो गया। अभी भारत में लॉकआउट का एक माह भी पूरा नहीं हुआ और लोग वीडियो भेज रहे हैं कि नदियों का पानी आसमानी रंग में बदल गया। 

जालंधर के न्यूज़ पेपर में छपा कि हिमाचल की पहाड़ी अब जालंधर से दिखाई दे रही हैं। यह क्या है ? यह केवल कुदरत के द्वारा ही संभव था। दिल्ली की आम आदमी पार्टी की सरकार औड/इवन द्वारा ऐसा करने का प्रयास करती रही। मगर पंजाब हरियाणा का किसान खेतों में आग लगा सब प्रयासों को निरर्थक बना देता था। 

जिस दुःख को हम सब इंसान भोग रहे हैं वह पैदा भी हमारा ही किया है। जहाँ से सारे विश्व को एक-चौथाई ऑक्सीजन मिलती थी उन जँगलों को इंसान ने ही अपने लालच के लिए उजाड़ा। ऑस्ट्रेलिया की सरकार ने पैसा कमाने के लालच में सीमा से ज्यादा कोयला निकाला, परिणाम साल भर चलने वाली आग। 

गरीब मज़दूरों को भी सड़कों पर भटकना पड़ रहा है। अधिकाँश को मैं देखता हूँ बच्चे ज्यादा साधन कम और लॉटरी की लत। अगर घर से दूर नौकरी करने आए हो तो जिससे एक-दो महीने का राशन चल जाए इतना पैसा भी बचा नहीं पाए ? इससे अच्छा तो घर पर ही रहते। 

परमेश्वर वाल्मीकि दयावान पावन योगविशिष्ठ में फरमाते हैं, "संसार में कुछ भी स्थिर नहीं है। सभी अनित्य है। जब करुणासागर विष्णु के हाथों मासूम क्रौंच की निर्मम हत्या पर साथी क्रौंच की हृदय-विदारक {Heartbreaking} पुकार सुनते हैं तब जो श्लोक उनके मुख से निकलता है। 

मा निषाद प्रतिष्ठां त्वमगमः शाश्वतीः समाः ।
यत्क्रौंच मिथुना देकमवधी काम मोहितम् ।।(वाल्मीकि रामायण, बालकाण्ड, द्वितीय सर्ग, श्लोक 15)  

यह केवल संसार का प्रथम श्लोक नहीं है। इसमें प्राकृति वो शाश्वत सत्य है कि जैसा बीजोगे {To seed} वैसा हिन् काटोगे।  हुआ विष्णु को जब राम के रूप में जन्म मिला तब क्रौंच की भांति ही सीता के वियोग में राम को ताड़ना पड़ा। मगर ईश्वर दयालु हैं और कहते हैं, "ऐसा सोच कर दुःखी न हो कि भाग्य का लिखा मिटाया नहीं जा सकता।" 

हमें अपने गुनाहों को करते हुए अपनी सोच को सार्थक दिशा में सोचना होगा। जैसे कोई अपने घर को साफ़ करने के लिए आग नहीं लगा सकता वैसे ही वो जो सृजक है सारे संसार का वो विनाशक नहीं हो सकता। सुधार रहा है वो, कुछ हम कोशिश करें सुधरने की। 

नित्य कार्य भी करो, कुछ घर की साफ़-सफाई। पत्नी के साथ रसोई में भी जाओ। और समय मिलेगा अच्छी किताबें पढ़ो। किताबें न हो तो सर्च करो मिल जाएँगी। मेरे आलावा Sukhwinder Sabharwal & Vicky Devantak की पोस्ट पढ़ो। इनमें धर्म और इतिहास की जानकारी मिलेगी 


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