पिछले लोकसभा और विधान सभा में मुँह के बल गिरने वाली मायावती हमें किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं। एक जाति की नेता मायावती जो मोलभाव करते वक्त न वंशदानी बाबा साहिब डॉ अम्बेडकर को याद रखती है, न अपना सारा जीवन लगाने वाले मान्यवर काशीराम की परवाह करती हैं।
इस आंदोलन की शुरुआत जहाँ तक मुझे मालूम है सामाजिक व स्वाभिमान को लेकर हुई थी। आज मिशन, सिद्धांत हैं कहाँ ? सब के सब मायावती जी के महंगे बैड के नीचे दब गए। किसी का प्रधानमन्त्री बनना दलितोद्धार कैसे हो सकता है और वो भी वो जिसे दलितों से ज्यादा दिन-रात ब्राह्मणों की चिंता रहती हो ?
मेरे सवालों को गंभीरता से न लेकर उल्टा इनका खेमा मुझे और मेरे समाज को आरएसएस का एजेंट कहना शुरू कर देगा, जिसकी मुझे कोई चिन्ता नहीं क्योंकि हकीकत सभी जानते हैं। {मायावती और बामसेफ के भगतों के बिना} पिछले विधानसभा चुनाव में भाजपा को रोकने के लिए हमें मजबूरी बसपा की बात करनी पड़ी।
ताज़ा सच्चाई यह है कि अगर मायावती जी छत्तीसगढ़ में बिना वजह अपने उम्मीदवार न उतारती तो भाजपा के 18
एम.एल.ए. नहीं केवल 3 एम.एल.ए. ही जीत पाते। अब बताइए कौन किसका मददगार या एजेंट है। यही मध्य-प्रदेश में किया।
हम मोदी, भाजपा और आरएसएस के सख्त खिलाफ हैं और अब इसी लाइन में मायावती जी भी मानते हैं। आर्थिक आधार पर आरक्षण संविधान के विपरीत है। इसे ऐसे भी कहा जा सकता है कि विश्वज्ञान प्रतीक बाबा साहिब की सोच के एकदम उल्ट है। इसलिए मायावती जी विचारिक आरएसएस ही हैं।
अगर यह पूछा जाये की कौन बेहतर प्रधानमंत्री हो सकता है तो मेरा मानना है कि हम प्रधानमन्त्री की बात करते वक्त अपना दिल-दिमाग पहले विशाल कर लें। हितों की बात सोचनी पाप नहीं मगर जाति व धर्म, क्षेत्र व भाषा, लिंग व रंग भेद का सोचना ठीक नहीं।
प्रधानमन्त्री के रूप में राहुल बुरे नहीं हैं। अगर अनुभव की बात करनी है और सामाजिक न्याय को आधार मानना है तो लालू जी मेरी पहली पसँद हैं। जिस शख्स में दृढ़ता है, होंसला है संघ से लड़ने का और बेबाकी से जेल चले जाने का। तीसरा नाम शरद यादव हो सकता है। मोदी बिलकुल नहीं।
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